लॉर्ड डलहौजी का शासनकाल (1848–56) : ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार और सुधार
लॉर्ड डलहौजी (1848–1856), ब्रिटिश भारत के सबसे प्रभावशाली गवर्नर-जनरलों में से एक, अपने साम्राज्यवादी नीतियों और प्रशासनिक सुधारों के लिए जाने जाते हैं। उनकी व्यपगत का सिद्धांत (Doctrine of Lapse), युद्धों, और कुशासन के आरोपों ने ब्रिटिश साम्राज्य को विस्तारित किया, जबकि रेलवे, टेलीग्राफ, और नहरों ने भारत को आधुनिक युग में प्रवेश कराया। यह लेख डलहौजी के शासनकाल की प्रमुख नीतियों, उपलब्धियों, और उनके ऐतिहासिक महत्व को विस्तार से बताता है।
लॉर्ड डलहौजी का साम्राज्य विस्तार
डलहौजी ने युद्ध, कुशासन के आरोप, और डॉक्ट्रिन ऑफ लेप्स जैसे तरीकों से ब्रिटिश साम्राज्य को मजबूत किया।
1. युद्धों के माध्यम से विस्तार
- द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध (1848–49): इस युद्ध के बाद 29 मार्च 1849 को पंजाब को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया। महाराजा दलीप सिंह को अपदस्थ कर पंजाब पर ब्रिटिश शासन स्थापित हुआ।
- द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध (1852): इस युद्ध में लोअर बर्मा (पेगू) को ब्रिटिश नियंत्रण में लिया गया, जिससे ब्रिटिश भारत की दक्षिण-पूर्वी सीमाएँ मजबूत हुईं।
2. कुशासन के आरोप
डलहौजी ने कई भारतीय राज्यों को कुशासन का हवाला देकर ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया:
- सिक्किम (1850): दो ब्रिटिश डॉक्टरों के साथ दुर्व्यवहार का आरोप लगाकर सिक्किम पर कब्जा किया और दार्जीलिंग को हासिल किया।
- बरार (1853): हैदराबाद के निजाम से कपास उत्पादक क्षेत्र बरार को कुशासन के नाम पर छीन लिया।
- अवध (1856): नवाब वाजिद अली शाह को हटाकर रेजीडेंट जेम्स आउट्रम की मदद से अवध को ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल किया।
3. व्यपगत का सिद्धांत (Doctrine of Lapse)
डॉक्ट्रिन ऑफ लेप्स डलहौजी की सबसे विवादास्पद नीति थी। इसके तहत, यदि कोई अधीनस्थ राज्य का शासक बिना जैविक उत्तराधिकारी के मर जाता था, तो उसका राज्य ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया जाता था। इस नीति की शुरुआत 1834 में कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स ने की थी, लेकिन डलहौजी ने इसे आक्रामक रूप से लागू किया।
- सतारा (1848): राजा अप्पा साहब की मृत्यु के बाद।
- जैतपुर और संभलपुर (1849)
- बघाट (1850)
- उदयपुर (1852)
- झाँसी (1853): रानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र को अस्वीकार कर।
- नागपुर (1854)
नोट: बाद में लॉर्ड कैनिंग ने उदयपुर और बघाट के विलय को रद्द किया। करौली (1855) को भी इस सिद्धांत के तहत मिलाने की कोशिश असफल रही।
प्रशासनिक और आधुनिकीकरण सुधार
डलहौजी ने भारत में आधुनिक बुनियादी ढांचे और प्रशासनिक सुधारों की नींव रखी, जिसने ब्रिटिश शासन को सुदृढ़ किया।
1. यातायात और संचार
- रेलवे का विकास:
- 1853: पहली रेल बंबई से थाने (34 किमी) शुरू हुई।
- 1854: दूसरी रेल कलकत्ता से रानीगंज तक।
- रेलवे निर्माण के लिए ब्रिटिश पूंजी को 5% लाभ की गारंटी दी गई।
- टेलीग्राफ सिस्टम: 1853 में कलकत्ता से आगरा के बीच टेलीग्राफ लाइन शुरू की गई।
- डाक सुधार: 1854 में पोस्ट ऑफिस एक्ट लागू हुआ, जिसके तहत तीनों प्रेसीडेंसी में डाक महानिदेशक का पद बनाया गया।
2. सार्वजनिक निर्माण विभाग (P.W.D.)
डलहौजी ने 1854 में सार्वजनिक निर्माण विभाग (P.W.D.) को स्वतंत्र विभाग के रूप में स्थापित किया। इसका नेतृत्व मुख्य अभियंता करता था।
- गंगा नहर: 1854 में सर प्रौकी कॉटले की योजना के तहत पूरी हुई।
- बारी-दोआब नहर: इसका निर्माण शुरू हुआ।
3. अन्य सुधार
- शिक्षा: वुड्स डिस्पैच (1854) के तहत आधुनिक शिक्षा प्रणाली की नींव रखी गई।
- सामाजिक सुधार: 1856 में वैधव पुनर्विवाह अधिनियम पारित हुआ।
- प्रशासन: लेफ्टिनेंट गवर्नर का पद बनाया गया, और बंगाल में प्रशासनिक सुधार किए गए।
डलहौजी का ऐतिहासिक महत्व
लॉर्ड डलहौजी का शासनकाल ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार और भारत के आधुनिकीकरण के लिए महत्वपूर्ण था। उनकी डॉक्ट्रिन ऑफ लेप्स और युद्धों ने ब्रिटिश शक्ति को सुदृढ़ किया, जबकि रेलवे, टेलीग्राफ, और नहरों ने भारत को औद्योगिक युग में प्रवेश कराया। हालांकि, उनकी नीतियों ने भारतीय शासकों और जनता में असंतोष पैदा किया, जो 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख कारण बना।
प्रमुख तथ्य
- शासनकाल: 1848–1856
- प्रमुख नीति: व्यपगत का सिद्धांत
- उपलब्धियाँ: रेलवे, टेलीग्राफ, P.W.D., गंगा नहर
निष्कर्ष
लॉर्ड डलहौजी का शासनकाल ब्रिटिश भारत के इतिहास में एक परिवर्तनकारी दौर था। उनकी साम्राज्यवादी नीतियों ने ब्रिटिश शक्ति को चरम पर पहुँचाया, लेकिन भारतीय राज्यों में असंतोष को भी बढ़ावा दिया। रेलवे, टेलीग्राफ, और नहरों जैसे सुधारों ने भारत को आधुनिक बनाया, जो आज भी उनकी विरासत का हिस्सा हैं। डलहौजी की नीतियाँ और सुधार भारतीय इतिहास के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण हैं।