गोगाजी चौहान : राजस्थान के लोकप्रिय लोक देवता

गोगाजी चौहान, जिन्हें गोगा बाप्पा, जाहर पीर, और नागों के देवता के नाम से जाना जाता है, राजस्थान की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। पंच पीरों में सबसे प्रमुख, गोगाजी का जन्म संवत् 1003 में चूरू जिले के ददरेवा में हुआ था। उनके पिता जेवरजी चौहान और माता बाछल दे थीं, जबकि उनकी पत्नी केलमदे जोधपुर के फलौदी की राजकुमारी थीं। यह लेख गोगाजी के जीवन, उनकी वीरता, और उनके सांस्कृतिक महत्व को विस्तार से बताता है।


गोगाजी का परिचय: एक वीर योद्धा और लोक देवता

गोगाजी चौहान राजस्थान के उन लोक देवताओं में से हैं जिनकी भक्ति हिंदू और मुस्लिम समुदायों में समान रूप से प्रचलित है। वे नागों के संरक्षक माने जाते हैं और सर्पदंश से बचाव के लिए उनकी पूजा की जाती है। उनकी नीली घोड़ी और सर्प प्रतीक उनकी पहचान का अभिन्न हिस्सा हैं।

प्रमुख जानकारी

  • जन्म स्थान: ददरेवा, चूरू, राजस्थान
  • पत्नी: केलमदे (मेनलदे)
  • प्रतीक: सर्प
  • सवारी: नीली घोड़ी

गोगाजी और नागों का अनोखा संबंध

गोगाजी का नागों से गहरा संबंध एक रोचक कथा से जुड़ा है। किवदंती है कि उनकी पत्नी केलमदे की मृत्यु सर्पदंश से हुई थी। क्रोधित गोगाजी ने एक अग्नि अनुष्ठान शुरू किया, जिसमें कई सांप जलने लगे। सांपों के राजा ने अनुष्ठान रोककर केलमदे को पुनर्जनन दिया। इसके बाद से गोगाजी को जाहर पीर (जहर उतारने वाला) के रूप में पूजा जाने लगा। उत्तर भारत, खासकर राजस्थान और उत्तर प्रदेश में, सर्पदंश से बचाव के लिए उनकी पूजा विशेष रूप से की जाती है।

  • सांकल नृत्य: गोगाजी की भक्ति में यह पारंपरिक नृत्य प्रमुख है।
  • खेजड़ी वृक्ष: गोगाजी का निवास खेजड़ी वृक्ष के नीचे माना जाता है।

गोगाजी की वीरता और शहादत

गोगाजी का अपने मौसेरे भाइयों, अर्जन और सुर्जन, के साथ जमीन-जायदाद को लेकर विवाद हुआ। इन भाइयों ने मुस्लिम आक्रांता महमूद गजनवी की मदद से गोगाजी पर हमला किया। गोगाजी ने अदम्य साहस के साथ युद्ध लड़ा और शहीद हो गए। कथा के अनुसार, उनका सिर ददरेवा में गिरा, जिसे शीषमेडी कहते हैं, और धड़ नोहर (हनुमानगढ़) में गिरा, जिसे गोगामेडी के नाम से जाना जाता है।

महमूद गजनवी ने बिना सिर के युद्ध करते गोगाजी की वीरता को देखकर उन्हें “जाहिर पीर” (प्रत्यक्ष पीर) की उपाधि दी।


गोगामेडी: तीर्थ स्थल और भव्य मेला

हनुमानगढ़ में स्थित गोगामेडी गोगाजी का सबसे प्रमुख तीर्थ स्थल है। इस मंदिर का निर्माण फिरोजशाह तुगलक ने करवाया था, और इसका वर्तमान स्वरूप बीकानेर के महाराजा गंगासिंह की देन है। मंदिर के मुख्य द्वार पर “बिस्मिल्लाह” लिखा है, जो हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है।

गोगा नवमी मेला

  • कब: भाद्रपद कृष्णा नवमी
  • कहाँ: गोगामेडी, हनुमानगढ़
  • विशेषता: लाखों श्रद्धालु सांकल नृत्य करते हैं और गोगाजी की विशाल ध्वजा चढ़ाते हैं।
  • पुजारी: एक हिंदू और एक मुस्लिम पुजारी, जो सामाजिक समरसता को दर्शाते हैं।

अन्य पूजा स्थल: जालौर के साँचौर में “गोगाजी की ओल्डी” एक और महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।


गोगाजी का सांस्कृतिक महत्व

गोगाजी का प्रभाव राजस्थान की संस्कृति में गहराई तक समाया है। किसान खेत जोतने से पहले अपने हल और बैल को गोगा राखड़ी बांधते हैं, जो उनकी भक्ति का प्रतीक है। गोगाजी से जुड़ा वाद्य यंत्र डेरू और सांकल नृत्य उनकी पूजा की अनूठी परंपराएँ हैं।

  • खेजड़ी वृक्ष की पूजा: गोगाजी का निवास इस पवित्र वृक्ष से जुड़ा है।
  • गोगा राखड़ी: खेती और पशुपालन में समृद्धि के लिए बांधी जाती है।
  • सांकल नृत्य और डेरू: भक्ति और उत्सव का प्रतीक।

गोगाजी से जुड़े रोचक तथ्य

  • गोगाजी की ध्वजा को विश्व की सबसे बड़ी ध्वजाओं में से एक माना जाता है।
  • उत्तर भारत में सर्पदंश से बचाव के लिए उनकी पूजा विशेष रूप से प्रचलित है।
  • उन्हें “गोगा बाप्पा” के नाम से भी प्यार से पुकारा जाता है।
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