भारत का राष्ट्रपति : संवैधानिक प्रमुख और प्रथम नागरिक
भारत का राष्ट्रपति देश का संवैधानिक प्रमुख और प्रथम नागरिक है। भारतीय संविधान के अनुसार, संघ की कार्यकारी शक्ति राष्ट्रपति में निहित है, लेकिन यह शक्ति नाममात्र की है, क्योंकि वास्तविक शक्ति प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद् के पास होती है। राष्ट्रपति के नाम पर सभी प्रशासनिक कार्य संचालित होते हैं। यह लेख राष्ट्रपति की योग्यताओं, निर्वाचन, शक्तियों, और उनकी भूमिका के महत्व को विस्तार से बताता है।
राष्ट्रपति की योग्यताएँ (अनुच्छेद 58)
राष्ट्रपति बनने के लिए निम्नलिखित योग्यताएँ आवश्यक हैं:
- भारत का नागरिक होना।
- 35 वर्ष की आयु पूरी करना।
- लोकसभा सदस्य बनने की योग्यता रखना।
- केंद्र या राज्य सरकार के अधीन कोई लाभ का पद न धारण करना।
राष्ट्रपति का निर्वाचन
राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व और एकल संक्रमणीय मत पद्धति द्वारा होता है। निर्वाचक मंडल में निम्नलिखित शामिल हैं:
- संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के निर्वाचित सदस्य।
- राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य।
- दिल्ली और पुडुचेरी की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य (70वाँ संशोधन, 1992)।
मत मूल्य गणना
- राज्य विधानसभा सदस्य: (राज्य की जनसंख्या × 1000) ÷ निर्वाचित सदस्यों की संख्या। शेष ≥ 500 होने पर 1 अतिरिक्त मत।
- संसद सदस्य: राज्यों के कुल मत ÷ संसद के निर्वाचित सदस्यों की संख्या।
मतदान प्रक्रिया
- प्रथम प्राथमिकता के मतों की गणना।
- कोटा प्राप्त होने पर उम्मीदवार विजयी।
- अन्यथा द्वितीय प्राथमिकता के मतों की गणना और कम मत वाले उम्मीदवार के मत हस्तांतरित।
- उदाहरण: 1969 में वी.वी. गिरी का चुनाव द्वितीय प्राथमिकता गणना से हुआ।
विवाद निपटारा
- चुनाव चुनाव आयोग द्वारा संचालित।
- विवादों का निपटारा उच्चतम न्यायालय करता है।
- अवैध निर्वाचन होने पर भी पूर्व कार्य वैध रहते हैं।
कार्यकाल और पदमुक्ति
- कार्यकाल: 5 वर्ष।
- पुनर्निर्वाचन: कोई सीमा नहीं।
- त्यागपत्र: उपराष्ट्रपति को।
महाभियोग (अनुच्छेद 61)
राष्ट्रपति को संविधान उल्लंघन के आधार पर महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है। प्रक्रिया:
- संसद के किसी सदन में 1/4 सदस्यों के हस्ताक्षर से प्रस्ताव।
- 14 दिन बाद विचार, 2/3 बहुमत से स्वीकृति।
- दूसरे सदन में जांच, 2/3 बहुमत से स्वीकृति पर पदमुक्ति।
शपथ और कार्यवाहक राष्ट्रपति
- शपथ (अनुच्छेद 60): मुख्य न्यायाधीश या वरिष्ठतम न्यायाधीश द्वारा। शपथ में संविधान की रक्षा, सेवा, और जनकल्याण का वचन।
- कार्यवाहक राष्ट्रपति:
- उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में कार्यभार संभालता है।
- उपराष्ट्रपति की अनुपस्थिति में मुख्य न्यायाधीश।
- पद रिक्त होने पर 6 महीने में नया चुनाव अनिवार्य।
वेतन और सुविधाएँ
- वेतन: 5 लाख रुपये मासिक (2025 तक संशोधित)।
- सुविधाएँ: सरकारी आवास (राष्ट्रपति भवन), भत्ते, और पेंशन।
- पूर्व राष्ट्रपतियों: सचिवालय, यात्रा सुविधाएँ, और अन्य लाभ।
विशेषाधिकार (अनुच्छेद 361)
- कार्यकाल में आपराधिक कार्यवाही से पूर्ण छूट।
- सिविल कार्यवाही के लिए 2 माह पूर्व नोटिस आवश्यक।
- न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं।
राष्ट्रपति की शक्तियाँ
राष्ट्रपति की शक्तियाँ दो प्रकार की हैं: सामान्यकालीन और आपातकालीन। ये शक्तियाँ मंत्रिपरिषद् की सलाह पर प्रयोग की जाती हैं।
1. सामान्यकालीन शक्तियाँ
- कार्यकारी शक्तियाँ (अनुच्छेद 53, 77):
- प्रधानमंत्री, मंत्रियों, राज्यपालों, न्यायाधीशों, और अन्य उच्च पदों पर नियुक्तियाँ।
- प्रशासनिक कार्य राष्ट्रपति के नाम पर।
- विधायी शक्तियाँ:
- संसद सत्र बुलाना, स्थगित करना, और लोकसभा भंग करना।
- विधेयकों पर स्वीकृति या वीटो (निरपेक्ष, निलंबनकारी, पॉकेट)।
- अध्यादेश जारी करना (अनुच्छेद 123)।
- वित्तीय शक्तियाँ:
- बजट प्रस्तुति और धन विधेयक की स्वीकृति।
- आकस्मिक निधि पर नियंत्रण।
- वित्त आयोग की नियुक्ति।
- न्यायिक शक्तियाँ (अनुच्छेद 72):
- क्षमादान, लघुकरण, परिहार, निलंबन, और विराम।
- मृत्युदंड में विशेष अधिकार।
- सैन्य शक्तियाँ:
- तीनों सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर।
- युद्ध या शांति की घोषणा।
- कूटनीतिक शक्तियाँ:
- विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व।
- राजदूतों की नियुक्ति और संधियाँ।
- राज्यों संबंधी शक्तियाँ:
- राज्यपालों की नियुक्ति और कुछ विधेयकों की स्वीकृति।
2. आपातकालीन शक्तियाँ (अनुच्छेद 352-360)
- राष्ट्रीय आपात (अनुच्छेद 352):
- युद्ध, बाह्य आक्रमण, या सशस्त्र विद्रोह पर घोषणा।
- उदाहरण: 1962 (चीन युद्ध), 1965, 1971 (पाकिस्तान युद्ध), 1975 (आंतरिक आपात)।
- राज्य आपात (अनुच्छेद 356):
- संवैधानिक तंत्र विफलता पर राष्ट्रपति शासन।
- 6 माह तक, संसद की स्वीकृति से विस्तार।
- वित्तीय आपात (अनुच्छेद 360):
- आर्थिक संकट पर घोषणा (अब तक लागू नहीं)।
- वेतन कटौती और वित्तीय नियंत्रण।
राष्ट्रपति की शक्तियों की आलोचना
- अधिक शक्तियाँ: गैर-प्रत्यक्ष निर्वाचन के बावजूद आपातकालीन शक्तियाँ व्यापक हैं।
- मौलिक अधिकारों का हनन: आपातकाल में स्वतंत्रता पर अंकुश लग सकता है।
- संघात्मकता पर प्रभाव: राज्य आपात (अनुच्छेद 356) राज्यों की स्वायत्तता को कमजोर कर सकता है।
- दुरुपयोग की आशंका: एकल निर्णय की शक्ति से दुरुपयोग का खतरा।
आपातकालीन शक्तियों का महत्व
- राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा: आपातकालीन शक्तियाँ राष्ट्रीय स्थिरता के लिए आवश्यक हैं।
- मंत्रिमंडल की सलाह: 44वाँ संशोधन (1978) ने सुनिश्चित किया कि आपातकालीन शक्तियाँ मंत्रिमंडल की सलाह पर ही प्रयोग हों।
- स्थिरता: संकटकाल में शासन को सुचारु रखने में सहायक।
निष्कर्ष
भारत का राष्ट्रपति एक संवैधानिक प्रतीक है, जो देश की एकता और लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रतीक है। सामान्यकाल में उनकी भूमिका औपचारिक होती है, लेकिन आपातकाल में उनकी शक्तियाँ राष्ट्रीय स्थिरता और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं। मंत्रिपरिषद् की सलाह पर कार्य करते हुए, राष्ट्रपति भारत की संसदीय और संघात्मक व्यवस्था को संतुलित रखता है। यह संवैधानिक ढांचा भारत के सुशासन और लोकतंत्र को मजबूत करता है।