तेजाजी : नागवंशीय जाट और गौरक्षक लोकदेवता
तेजाजी का जीवन परिचय
तेजाजी का जन्म माघ शुक्ला चतुर्दशी, 1074 ई. को नागौर जिले के खरनाल (खड़नाल) गाँव में हुआ था। उनके पिता ताहड़जी जाट और माता रामकुंवरी (कुछ स्रोतों में राजकुंवरी) थीं। उनकी पत्नी पेमलदे, पनेर (अजमेर) के रायचन्द्र जाट की पुत्री थीं। तेजाजी की लोकप्रियता का सम्मान करते हुए, 7 सितंबर 2011 को तत्कालीन केंद्रीय मंत्री सचिन पायलट ने खरनाल में उनके नाम पर 5 रुपये का डाक टिकट जारी किया, जो उनकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्ता को दर्शाता है।
प्रमुख जानकारी
- जन्म: माघ शुक्ला चतुर्दशी, 1074 ई.
- जन्म स्थान: खरनाल, नागौर
- पिता: ताहड़जी जाट
- पत्नी: पेमलदे
- सवारी: घोड़ी लीलण
- प्रमुख मंदिर: सुरसरा, किशनगढ़, अजमेर
गौरक्षा और साहस की कथा
तेजाजी की सबसे प्रसिद्ध कथा गौरक्षा से जुड़ी है। एक बार लाछा गुर्जरी की गायों को मेर (वर्तमान आमेर) के मीणाओं ने लूट लिया था। तेजाजी ने अपनी वीरता और साहस का परिचय देते हुए इन गायों को छुड़ाया, जिससे वे गौरक्षा के प्रतीक बन गए। उनकी वफादार घोड़ी लीलण उनकी साहसी यात्राओं की साथी थी। कथा के अनुसार, सुरसरा (किशनगढ़, अजमेर) में साँप के काटने से तेजाजी की मृत्यु हुई, और लीलण ने इस दुखद समाचार को उनके घर पहुँचाया। यह कथा तेजाजी की निष्ठा और बलिदान को अमर बनाती है।
साँप काटने का उपचार और भोपों की परंपरा
तेजाजी को साँप काटने के निवारक देवता के रूप में पूजा जाता है। उनकी यह मान्यता विशेष रूप से अजमेर और नागौर क्षेत्रों में प्रचलित है। तेजाजी के भोपे (पुजारी) साँप के जहर से पीड़ित व्यक्तियों को तेजाजी के थान (चबूतरे) पर ले जाते हैं। वहाँ गौमूत्र से कुल्ला करवाया जाता है और गोबर की राख दाँतों में दबाकर जहर को चूसा जाता है। यह परंपरा आज भी जीवित है और भक्तों में तेजाजी की चमत्कारी शक्ति के प्रति अटूट विश्वास को दर्शाती है।
तेजाजी के प्रमुख पूजा स्थल
तेजाजी की पूजा विशेष रूप से अजमेर और नागौर में प्रचलित है। उनके प्रमुख पूजा स्थल निम्नलिखित हैं:
- सेंदरिया (अजमेर)
- ब्यावर (अजमेर)
- भावतां (अजमेर)
- सुरसरा (किशनगढ़, अजमेर)
- खरनाल (नागौर)
इन स्थानों पर तेजाजी के पुजारी, जिन्हें घोड़ला कहा जाता है, उनकी पूजा और परंपराओं को जीवित रखते हैं।
तेजादशमी मेला: राजस्थान का सबसे बड़ा पशु मेला
हर साल भाद्रपद शुक्ला दशमी को परबतसर (नागौर) में तेजादशमी मेला आयोजित होता है, जो राजस्थान का सबसे बड़ा पशु मेला है। इस मेले में गौरक्षा और कृषि कार्यों के उपकारक देवता के रूप में तेजाजी की पूजा की जाती है। तेजाजी को काला और बाला (काले और सफेद बैल) के संरक्षक के रूप में भी पूजा जाता है। यह मेला न केवल आध्यात्मिक महत्व रखता है, बल्कि क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में भी योगदान देता है।
तेजाजी की सांस्कृतिक विरासत
तेजाजी की घोड़ी लीलण और उनकी गौरक्षा की कहानियाँ राजस्थान के लोकगीतों और फड़ परंपराओं में जीवित हैं। उनके भोपे रावण हत्था और अन्य वाद्य यंत्रों के साथ उनकी कथाएँ गाते हैं, जो उनकी वीरता और बलिदान को अमर बनाती हैं। तेजाजी की स्मृति में जारी डाक टिकट और परबतसर का मेला उनकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को और मजबूत करते हैं। तेजाजी साहस, करुणा, और भक्ति के प्रतीक हैं, जो राजस्थान की लोक संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं।
प्रसिद्ध कहावत
“तेजाजी की जय, गौरक्षक, जहर निवारक, भक्तों के रक्षक।”
रोचक तथ्य
- तेजाजी की घोड़ी लीलण को राजस्थान के लोकगीतों में अमर माना जाता है।
- वे एकमात्र लोक देवता हैं जिन्हें साँप काटने के निवारक के रूप में विशेष रूप से पूजा जाता है।
- तेजादशमी मेला राजस्थान का सबसे बड़ा पशु मेला है, जो उनकी गौरक्षा की विरासत को दर्शाता है।