मेवाड़ शैली : राजस्थान की लघु चित्रकला

मेवाड़ शैली का इतिहास

मेवाड़ शैली की शुरुआत 1260 ई. में ‘श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चूर्णी’ ग्रंथ के चित्रांकन से हुई, जो मेवाड़ के राजा तेजसिंह के समय में तैयार किया गया। यह इस शैली का सबसे प्राचीन चित्रित ग्रंथ है। दूसरा महत्वपूर्ण ग्रंथ ‘सुपासनाह चरियम’ (पार्श्वनाथ चरित्र) 1423 ई. में देलवाड़ा में चित्रित हुआ। महाराणा कुंभा (1433–1468) के संरक्षण में इस शैली ने नई ऊँचाइयों को छुआ, और राणा अमरसिंह प्रथम (1597–1620) के काल में यह अपने स्वर्णयुग में पहुँची। राणा जगतसिंह प्रथम (1628–1652) के समय में साहबदीन और मनोहर जैसे चित्रकारों ने इस शैली को और समृद्ध किया।


मेवाड़ शैली की विशेषताएँ

मेवाड़ शैली अपनी विशिष्ट शैली और जीवंत रंगों के लिए जानी जाती है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  • रंग संयोजन: पीले रंग की प्रधानता, लाल और हरे रंग का संतुलित उपयोग, और कदम्ब वृक्षों का चित्रण।
  • वेशभूषा: पुरुषों में पगड़ी, घेरदार जामा, और मोती के आभूषण; महिलाओं में लहंगा, पारदर्शी ओढ़नी, और दोहरी चिबुक।
  • आकृतियाँ: पुरुषों में लंबी मूंछें, विशाल आँखें, और गठीला शरीर; महिलाओं में मीनाकृत आँखें, ठिगना कद, और ठुड्डी पर तिल।
  • विषय: भित्ति चित्र, रागमाला, नायक-नायिका, बारह मासा, कृष्ण लीला, और रामायण जैसे साहित्यिक और धार्मिक विषय।
  • तकनीक: सजीव और प्रभावोत्पादक चित्रण के लिए भवनों, प्राकृतिक दृश्यों, और प्रमुख घटनाओं का उपयोग।

मुख्य विशेषता

मेवाड़ शैली की चित्रकला में भावनाओं और सौंदर्य का अनूठा संगम है, जो इसे अन्य राजस्थानी शैलियों से अलग करता है।


प्रमुख चित्र और चित्रकार

मेवाड़ शैली के कुछ उत्कृष्ट उदाहरणों में केशव द्वारा चित्रित ‘रसिक प्रिया’ और ‘गीत गोविंद’ शामिल हैं। राणा अमरसिंह प्रथम के समय निसारदीन द्वारा चावंड में चित्रित रागमाला चित्र इस शैली के स्वर्णयुग का प्रतीक हैं। राणा जगतसिंह प्रथम के काल में साहबदीन और मनोहर जैसे चित्रकारों ने रागमाला, रामायण, और लघु चित्रों को नई पहचान दी। अन्य प्रमुख चित्रकारों में कृपाराम, भैंरूराम, नासिरूद्दीन, हीरानंद, जगन्नाथ, और कमलचन्द्र शामिल हैं, जिन्होंने मेवाड़ शैली को वैश्विक स्तर पर प्रसिद्धि दिलाई।


चितेरों की ओरी: मेवाड़ का कला विद्यालय

मेवाड़ शैली को संगठित रूप प्रदान करने के लिए राणा जगतसिंह प्रथम ने राजमहल में ‘चितेरों की ओरी’ (तसवीरां रो कारखानो) नामक कला विद्यालय की स्थापना की। यह विद्यालय मेवाड़ शैली का केंद्र बना, जहाँ चित्रकारों ने अपनी कला को निखारा। साहबदीन की शैली का प्रभाव इस विद्यालय के माध्यम से आज भी देखा जा सकता है। राणा कर्णसिंह के काल में मर्दाना और जनाना महलों में भित्ति चित्र बनाए गए, जबकि महाराणा अमरसिंह द्वितीय के समय मुगल प्रभाव के साथ ‘बाड़ी-महल’ का निर्माण हुआ, जिसमें मेवाड़ शैली का अनूठा मिश्रण देखने को मिलता है।


उदयपुर का राजकीय संग्रहालय

उदयपुर के राजकीय संग्रहालय में मेवाड़ शैली के लघु चित्रों का विश्व का सबसे बड़ा संग्रह है। इस संग्रह में ‘रसिक प्रिया’ का चित्र सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण है। महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय के बाद साहित्यिक ग्रंथों पर आधारित लघु चित्रों की परंपरा में कमी आई, लेकिन पराक्रम शैली का विकास उदयपुर में हुआ, जो युद्ध और शौर्य के चित्रण पर केंद्रित थी। यह संग्रहालय मेवाड़ शैली की समृद्धि और वैभव का जीवंत प्रमाण है।


मेवाड़ शैली का सांस्कृतिक महत्व

मेवाड़ शैली न केवल एक कला रूप है, बल्कि राजस्थान की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का प्रतीक भी है। यह शैली महाराणाओं के संरक्षण, जैन और हिंदू ग्रंथों, और राजपूत परंपराओं को दर्शाती है। रागमाला, कृष्ण लीला, और नायक-नायिका जैसे विषयों ने इस शैली को भावनात्मक और सौंदर्यपूर्ण गहराई प्रदान की। मेवाड़ शैली ने मुगल और अन्य राजस्थानी शैलियों के साथ समन्वय स्थापित करते हुए अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखी।


रोचक तथ्य

  • मेवाड़ शैली का सबसे प्राचीन ग्रंथ ‘श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चूर्णी’ 1260 ई. में चित्रित हुआ।
  • उदयपुर का राजकीय संग्रहालय मेवाड़ शैली के लघु चित्रों का विश्व का सबसे बड़ा संग्रह रखता है।
  • राणा जगतसिंह प्रथम द्वारा स्थापित चितेरों की ओरी मेवाड़ शैली का पहला संगठित कला विद्यालय था।
Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url