धन निष्कासन सिद्धांत
धन निष्कासन सिद्धांत
धन निष्कासन सिद्धांत के जनक दादाभाई नौरोजी को माना जाता है। नौरोजी मूलतः गुजरात के नवसारी के थे जो शैक्षणिक उद्देश्य से लंदन गए थे। उन्होंने वहां पर कपास के व्यापार में सक्रिय होकर आर्थिक क्रियाकलापों का निष्पादन किया।
दादाभाई नौरोजी को भारत का पितामह कहा जाता है। नौरोजी ने कांग्रेस के अधिवेशनों की अध्यक्षता की थी। दादाभाई नौरोजी भारतीय मूल के प्रथम व्यक्ति थे जो ब्रिटिश ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ के सदस्य (1892-95 ई.) रहे।
सर्वप्रथम दादाभाई नौरोजी ने ब्रिटिश शासन की आर्थिक नीतियों का विश्लेषण किया तथा अपनी पुस्तक ‘पॉवर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया’ में धन निष्कासन का सिद्धांत प्रस्तुत किया।
गोपाल कृष्ण गोखले, सुब्रह्मण्यम अय्यर तथा पृथ्वीश चंद्र राय भारत के प्रमुख आर्थिक विश्लेषक थे। इन राष्ट्रवादी आर्थिक विश्लेषकों ने अपने अध्ययनों से यह सिद्ध किया कि अनाज एवं कच्चे माल के रूप में भारत का धन इंग्लैंड भेजा जाता है।
धन निष्कासन सिद्धांत की व्याख्या
दादाभाई नौरोजी ने निम्न तर्कों एवं कारणों के आधार पर धन का निष्कासन सिद्धांत की व्याख्या की:
- नौरोजी का मानना था कि गलत मुद्रा-विनियम का सहारा लेकर बड़ी मात्रा में भारत से कच्चे माल, अनाज के रूप में धन का निष्कासन किया।
- अंग्रेज अधिकारी एवं कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति उपरांत दी जाने वाली पेंशन भारत से निष्कासित धन से दी जाती थी।
- सैनिकों के साजो-सामान पर होने वाले खर्च के बदले भी व्यापक मात्रा में भारत से धन ढोकर लंदन ले जाया जाता था, इसे भी धन निष्कासन श्रेणी में रखा गया।
- अंग्रेजों द्वारा भारत के पड़ोसी देशों में चलाए गए सैन्य अभियानों का खर्च भी भारत पर भारित किया जाता था।
दादाभाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक ‘पॉवर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया’ में धन निष्कासन सिद्धांत को प्रस्तुत किया। अपने विचारों को वेल्बी कमीशन के सामने भी प्रस्तुत किया। भारत के सभी आर्थिक विश्लेषकों ने सरकार से मांग की कि भारतीय अर्थव्यवस्था का स्वरूप भारतीय हितों के अनुरूप तय किया जाए, जिससे देश का विकास हो सके। धन निष्कासन से भारत में रोजगार तथा आय की संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।