किशनगढ़ शैली: बणी ठणी और राजस्थानी चित्रकला का स्वर्ण युग

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किशनगढ़ शैली का इतिहास

किशनगढ़ की स्थापना 1609 ई. में किशनसिंह ने की थी, लेकिन चित्रकला का विकास उनके पुत्र मानसिंह (1658–1706) के शासनकाल में शुरू हुआ। इस शैली का स्वर्ण युग सावंतसिंह (नागरीदास, 1699–1764) के समय आया, जो एक कवि, भक्त, और शृंगार रस के प्रेमी थे। सावंतसिंह ने अपनी प्रेयसी बणी ठणी को राधा के रूप में देखा और अपनी ब्रजभाषा की भक्ति और शृंगार रचनाओं को चित्रों में जीवंत किया। इस दौर में किशनगढ़ शैली ने अपनी विशिष्ट और रोमांटिक पहचान बनाई, जो राधा-कृष्ण के प्रेम को कैनवास पर उतारती थी।


बणी ठणी: भारतीय मोनालिसा

किशनगढ़ शैली का सबसे प्रसिद्ध चित्र ‘बणी ठणी’ है, जिसे चित्रकार निहालचन्द ने 1778 ई. में बनाया। यह चित्र (48.8 × 36.6 सेमी) सावंतसिंह की प्रेयसी बणी ठणी को राधा के रूप में दर्शाता है और नारी सौंदर्य की पराकाष्ठा माना जाता है। कला समीक्षक एरिक डिक्सन ने इसे ‘भारतीय मोनालिसा’ की संज्ञा दी। यह चित्र किशनगढ़ महाराजा संग्रहालय में सुरक्षित है, और इसकी एक प्रति पेरिस के अल्बर्ट हॉल में प्रदर्शित है। 5 मई 1973 को भारत सरकार ने बणी ठणी के चित्र पर डाक टिकट जारी किया, जिसने इस शैली की वैश्विक ख्याति को और बढ़ाया।

प्रमुख जानकारी

  • स्थापना: 1609 ई., किशनसिंह द्वारा
  • स्वर्ण युग: सावंतसिंह (1699–1764)
  • प्रसिद्ध चित्र: बणी ठणी (1778 ई.)
  • प्रमुख चित्रकार: निहालचन्द
  • संग्रहालय: किशनगढ़ महाराजा संग्रहालय

किशनगढ़ शैली की विशेषताएँ

किशनगढ़ शैली अपनी शृंगारपूर्ण और सौंदर्यपरक विशेषताओं के लिए जानी जाती है, जो इसे अन्य राजस्थानी शैलियों से अलग करती है:

  • रंग: गुलाबी और सफेद रंगों की प्रमुखता, जो चित्रों में कोमलता और रोमांस लाते हैं।
  • वृक्ष: केले के वृक्ष का चित्रण, जो प्राकृतिक सौंदर्य को दर्शाता है।
  • पुरुष आकृति: समुन्नत ललाट, पतले अधर, लंबी ग्रीवा, छरहरा शरीर, नकीली चिबुक, और मादक नृत्य भाव।
  • वेशभूषा: पेंच बंधी पगड़ी, लंबा जामा, और कमर में दुपट्टा।
  • स्त्री आकृति: लंबी नाक, पंखुड़ी जैसे अधर, लंबे बाल, सुराहीदार ग्रीवा, पतली भृकुटी, और वेसरि (नाक का आभूषण)।
  • विषय: राधा-कृष्ण, शृंगार रस, और चांदनी रात की संगोष्ठी। भित्ति चित्र और रागरागिनी चित्रण इस शैली में प्रचलित नहीं हैं।

प्रमुख चित्रकार और चित्र

किशनगढ़ शैली के सबसे विख्यात चित्रकार निहालचन्द थे, जिन्होंने बणी ठणी और राधा-कृष्ण के चित्रों को अमर बनाया। चांदनी रात की संगोष्ठी, जिसे अमरचंद ने चित्रित किया, इस शैली की शृंगारी और रोमांटिक भावना को दर्शाता है। सावंतसिंह की ब्रजभाषा में लिखी भक्ति और शृंगार रचनाएँ, जैसे ‘बिहारी सतसई’ और ‘रसिक रत्नावली’, इस शैली की आत्मा बनीं। इन रचनाओं ने राधा-कृष्ण के प्रेम को चित्रों में जीवंत किया, जो किशनगढ़ शैली की पहचान है।


किशनगढ़ शैली की सांस्कृतिक विरासत

किशनगढ़ शैली ने राजस्थानी चित्रकला को शृंगार और सौंदर्य का एक नया आयाम दिया। बणी ठणी का चित्र न केवल कला प्रेमियों को मंत्रमुग्ध करता है, बल्कि भारतीय कला की वैश्विक पहचान का प्रतीक भी है। किशनगढ़ महाराजा संग्रहालय और पेरिस का अल्बर्ट हॉल इस शैली की वैश्विक पहुंच को दर्शाते हैं। सावंतसिंह की भक्ति और प्रेम की भावना ने इस शैली को एक अनूठा स्थान दिलाया, जो आज भी कला और संस्कृति के अध्येताओं को आकर्षित करता है।


रोचक तथ्य

  • बणी ठणी को ‘भारतीय मोनालिसा’ कहा जाता है और यह किशनगढ़ शैली का सबसे प्रसिद्ध चित्र है।
  • भारत सरकार ने 5 मई 1973 को बणी ठणी के चित्र पर डाक टिकट जारी किया।
  • किशनगढ़ शैली में भित्ति चित्र और रागरागिनी चित्रण का अभाव है, जो इसे अन्य राजस्थानी शैलियों से अलग करता है।

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