मेवाड़ का गुहिल वंश: राजस्थान का गौरव

 मेवाड़ का गुहिल वंश राजस्थान के इतिहास में एक सुनहरा अध्याय है। इस वंश ने न केवल मेवाड़ को शक्ति और समृद्धि दी, बल्कि अपनी वीरता, भक्ति और कला के माध्यम से भारत के इतिहास में अमर स्थान बनाया। आइए, इस वंश की कहानी को सरल और रोचक तरीके से जानें।

गुहिल वंश की स्थापना

  • संस्थापक: गुहादित्य (गुहिल), जिन्हें 566 ई. में हूण शासक मिहिरकुल को हराकर वंश की नींव रखने का श्रेय है।
  • राजधानी: नागदा (उदयपुर के पास)।
  • उत्पत्ति: इतिहासकार अबुल फजल ने गुहिलों को ईरान के नौशेखाँ आदिल की संतान माना, जबकि मुहणौत नैणसी ने 24 शाखाओं का उल्लेख किया, जिनमें मेवाड़ के गुहिल सबसे प्रसिद्ध हैं।

जानकारी: गुहिल की माता पुष्पावती और पिता शिलादित्य थे।

बप्पा रावल: मेवाड़ के वास्तविक संस्थापक

बप्पा रावल, जिन्हें कालभोज भी कहा जाता है, मेवाड़ के इतिहास में एक महान नायक हैं।

  • उपलब्धियाँ:
    • 734 ई. में मौर्य शासक मान मौर्य से चित्तौड़गढ़ किला जीता।
    • एकलिंगनाथ जी मंदिर (कैलाशपुरी, उदयपुर) का निर्माण करवाया, जिन्हें मेवाड़ के कुलदेवता माना जाता है।
    • नागदा को राजधानी बनाया।
  • विशेष: बप्पा रावल ने संन्यास लिया और उनकी समाधि एकलिंग जी के पास ‘बप्पा रावल’ के नाम से प्रसिद्ध है।
  • गुरु: हारीत ऋषि (लकुलीश शैव परंपरा के अनुयायी)।

रोचक तथ्य: इतिहासकार सी.वी. वैध ने बप्पा रावल को चार्ल्स मोर्टल कहा।


चित्तौड़गढ़: राजस्थान का सिरमौर

चित्तौड़गढ़ किला मेवाड़ की शान है और इसे राजस्थान का दक्षिण-पूर्वी प्रवेश द्वार कहा जाता है।

  • विशेषताएँ:
    • निर्माण: चित्रांगद मौर्य द्वारा बनाया गया।
    • स्थान: गम्भीरी और बेड़च नदियों के किनारे मेसा पठार पर।
    • द्वार: सात द्वार - पाडनपोल, भैरवपोल, गणेशपोल, हनुमानपोल, जोडनपोल, लक्ष्मणपोल, रामपोल।
    • आकार: क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा किला, व्हेल मछली की आकृति में।
  • महत्व: इसे "गढ़ तो बस चित्तौड़गढ़, बाकी सब..." कहा जाता है।

नोट: राजस्थान किलों की संख्या में देश में तीसरे स्थान पर है (पहला महाराष्ट्र, दूसरा मध्य प्रदेश)।


प्रमुख शासक और उनकी उपलब्धियाँ

1. रावल जैत्रसिंह (1213-1250 ई.)

  • इल्तुतमिश के आक्रमण का सफल प्रतिरोध।
  • 1242-43 में गुजरात के त्रिभुवनपाल से युद्ध।
  • चित्तौड़ को राजधानी बनाया।

2. रावल रतनसिंह (1301-1303 ई.)

  • अलाउद्दीन खिलजी के 1303 ई. के आक्रमण में शहीद।
  • पत्नी पद्मिनी का जौहर और सेनापति गोरा-बादल का बलिदान।
  • चित्तौड़ का प्रथम साका: राजपूतों का बलिदान और महिलाओं का सामूहिक जौहर।
  • पद्मावत: मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित अवधी ग्रन्थ में रतनसिंह और पद्मिनी की प्रेम कथा।

जानकारी: कुछ इतिहासकार पद्मावत को काल्पनिक मानते हैं।

3. राणा हम्मीर (1326-1364 ई.)

  • सिसोदिया वंश के संस्थापक।
  • चित्तौड़ को मालदेव सोनगरा से जीता।
  • उपाधियाँ: वीर राजा, विषमघाटी पंचानन।

4. राणा कुम्भा (1433-1468 ई.)

मेवाड़ के सबसे महान शासक, जिनका काल कला और वास्तुकला का स्वर्ण युग था।

  • उपलब्धियाँ:
    • 1437 ई. में मालवा के महमूद खिलजी को हराया।
    • विजय स्तम्भ (चित्तौड़) का निर्माण (1440-1448), जिसे भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोष कहा जाता है।
    • रणकपुर जैन मंदिर (1439) और कुम्भलगढ़ दुर्ग (1443-1459) का निर्माण।
  • उपाधियाँ: हालगुरु, हिन्दू सुरत्ताण, अभिनव भरताचार्य।
  • ग्रन्थ: संगीत राज, रसिक प्रिया, कामराजरतिसार।

रोचक तथ्य: विजय स्तम्भ पर 15 अगस्त 1949 को 1 रुपये का डाक टिकट जारी हुआ।


5. राणा सांगा (1509-1528 ई.)

मेवाड़ का सबसे प्रतापी शासक, जिन्हें ‘हिन्दूपत’ कहा जाता है।

  • युद्ध:
    • 1517-1519 में इब्राहिम लोदी को खातोली और बाड़ी में हराया।
    • 1519 में गागरोन युद्ध में महमूद खिलजी द्वितीय को बंदी बनाया।
    • 1527 में खानवा युद्ध में बाबर से पराजित।
  • मृत्यु: 1528 में कालपी में विष देने से बसवां (दौसा) में निधन।

नोट: खानवा युद्ध में बाबर ने तोपखाने का उपयोग किया, जिसने मुगल सत्ता की नींव रखी।

6. महाराणा प्रताप (1572-1597 ई.)

  • हल्दीघाटी युद्ध (1576): अकबर के सेनापति मानसिंह के खिलाफ लड़ा।
  • प्रिय अश्व: चेतक, जो युद्ध में मारा गया।
  • राजधानी: कुम्भलगढ़ और चावण्ड।
  • समर्थन: भामाशाह ने धन देकर सहायता की।

जानकारी: कर्नल टॉड ने हल्दीघाटी को ‘मेवाड़ की थर्मोपल्ली’ कहा।


एकलिंग जी: मेवाड़ की आत्मा

  • मेवाड़ के शासक एकलिंग जी को वास्तविक राजा मानते थे और स्वयं उनके दीवान के रूप में कार्य करते थे।
  • राजधानी छोड़ने से पहले शासक एकलिंग जी की स्वीकृति (‘आसकां’) लेते थे।

मेवाड़ की सांस्कृतिक विरासत

  • कला: मेवाड़ चित्रकला शैली की शुरुआत तेजसिंह के काल में।
  • वास्तुकला: कुम्भलगढ़, अचलगढ़, रणकपुर मंदिर जैसे निर्माण।
  • साहित्य: राणा कुम्भा के ग्रन्थ और मण्डन के वास्तुशास्त्र ग्रन्थ।

अन्य सिसोदिया राज्य

मेवाड़ के गुहिल वंश से निकले वीरों ने चार अन्य रियासतें स्थापित कीं:

  • डूंगरपुर: 1358 में डूंगरसिंह ने स्थापित किया।
  • बाँसवाड़ा: 1527 में जगमाल ने शासन संभाला।
  • प्रतापगढ़: 1561 में राव बीका ने स्थापित।
  • शाहपुरा: 1631 में सुजानसिंह ने स्थापित।

निष्कर्ष

गुहिल वंश ने मेवाड़ को न केवल एक शक्तिशाली राज्य बनाया, बल्कि अपनी वीरता, भक्ति और कला के माध्यम से भारतीय इतिहास में अमर स्थान बनाया। चित्तौड़गढ़ का किला और एकलिंग जी का मंदिर आज भी इस वंश की गौरवगाथा को जीवंत रखते हैं।

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