वेवेल योजना 1945

 नमस्कार दोस्तों! अगर आप भारतीय इतिहास के उत्सुक पाठक हैं, तो आज हम बात करेंगे वेवेल योजना (Wavell Plan) की, जो भारत की आजादी की राह में एक अहम पड़ाव थी। यह योजना 1945 में प्रस्तुत की गई थी और इसका उद्देश्य भारत में राजनीतिक गतिरोध को दूर करना था। इस ब्लॉग पोस्ट में हम वेवेल योजना की मुख्य विशेषताओं, पृष्ठभूमि और महत्व पर विस्तार से चर्चा करेंगे। अगर आप इतिहास के छात्र हैं या UPSC जैसी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, तो यह जानकारी आपके लिए बेहद उपयोगी साबित होगी।

क्या आप जानते हैं कि वेवेल योजना ने भारत में अंतरिम सरकार की नींव रखी?

वेवेल योजना की पृष्ठभूमि

अक्टूबर 1943 में, लॉर्ड लिनलिथगो (Lord Linlithgow) के स्थान पर लॉर्ड वेवेल (Lord Wavell) भारत के वायसराय और गवर्नर जनरल बनकर आए। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ रही थी, और ब्रिटिश सरकार भारत को स्वशासन की ओर ले जाना चाहती थी। इसी क्रम में, 14 जून 1945 को लॉर्ड वेवेल ने एक नई योजना प्रस्तुत की, जो वेवेल योजना के नाम से प्रसिद्ध हुई।

यह योजना मुख्य रूप से भारत के राजनीतिक नेताओं को एकजुट करने और युद्ध के बाद संविधान निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाने के लिए थी। योजना की घोषणा के साथ ही शिमला में एक सम्मेलन आयोजित करने की बात कही गई, जहां भारतीय नेता इस पर विचार-विमर्श कर सकें।

वेवेल योजना की मुख्य शर्तें और विशेषताएं

वेवेल योजना की शर्तें भारत की विविधता को ध्यान में रखते हुए बनाई गई थीं। आइए, इनकी विस्तार से जांच करें:

  1. कार्यकारिणी परिषद का पुनर्गठन: ब्रिटिश सरकार भारत को स्वशासन की ओर अग्रसर करना चाहती थी। इसके लिए गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद का पुनर्गठन किया जाना था। इसमें गवर्नर जनरल और प्रधान सेनापति को छोड़कर सभी सदस्य भारतीय राजनीतिक नेता होते। यह एक तरह की अंतरिम राष्ट्रीय सरकार जैसी होती।
  2. हिन्दू-मुस्लिम प्रतिनिधित्व में समानता: परिषद में हिन्दू और मुसलमानों के सदस्यों की संख्या बराबर रखी जाती। इससे सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा मिलता और राजनीतिक संतुलन बनता।
  3. गवर्नर जनरल का निषेधाधिकार: पुनर्गठित परिषद अंतरिम सरकार की तरह कार्य करती, और गवर्नर जनरल बिना वजह वीटो पावर (निषेधाधिकार) का इस्तेमाल नहीं करता। इससे भारतीय नेताओं को अधिक स्वायत्तता मिलती।
  4. ब्रिटिश हितों की सुरक्षा: भारत में ब्रिटेन के व्यापारिक और अन्य हितों की देखभाल के लिए 'ब्रिटिश हाई कमिश्नर' की नियुक्ति की जाती, ठीक वैसे ही जैसे अन्य अधिराज्यों में होती है।
  5. संविधान निर्माण: द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद, भारतीय खुद अपना संविधान बनाते। यह भारत की स्वतंत्रता की दिशा में एक बड़ा कदम था।
  6. प्रांतीय सरकारों की पुनर्स्थापना: अगर भारतीय नेता इस योजना को स्वीकार करते, तो प्रांतों में सामान्य संवैधानिक सरकारें फिर से स्थापित की जातीं।

इन शर्तों से स्पष्ट है कि वेवेल योजना ब्रिटिश सरकार की भारत को नियंत्रित स्वतंत्रता देने की कोशिश थी, लेकिन यह पूरी तरह सफल नहीं हो सकी।

शिमला सम्मेलन और योजना का परिणाम

योजना की घोषणा के बाद, जुलाई 1945 में शिमला में एक सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें कांग्रेस, मुस्लिम लीग और अन्य दलों के नेता शामिल हुए। हालांकि, मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने हिन्दू-मुस्लिम प्रतिनिधित्व पर आपत्ति जताई, जिससे सम्मेलन असफल रहा। नतीजतन, वेवेल योजना लागू नहीं हो सकी, लेकिन इसने कैबिनेट मिशन प्लान जैसी आगे की योजनाओं की राह प्रशस्त की।

वेवेल योजना का महत्व और आलोचना

  • महत्व: यह योजना भारत में राजनीतिक एकता की दिशा में पहला प्रयास थी। इससे अंतरिम सरकार का विचार मजबूत हुआ और युद्ध के बाद संविधान सभा का गठन संभव हुआ।
  • आलोचना: कई नेताओं ने इसे ब्रिटिश हितों को प्राथमिकता देने वाली योजना बताया। मुस्लिम लीग ने इसे विभाजन की ओर धकेलने वाला माना, जबकि कांग्रेस ने अधिक स्वायत्तता की मांग की।
Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url