पाबूजी राठौड़ : राजस्थान के अमर लोक नायक

 पाबूजी राठौड़ का प्रारंभिक जीवन

पाबूजी राठौड़ का जन्म 1239 ई. में जोधपुर के कोलुमण्ड गाँव (फलौदी) में हुआ था। उनके पिता धाँधल जी राठौड़ और माता कमलादे थे। उनका विवाह फूलमदे (सुपियार दे सोढ़ी) से हुआ, जो अमरकोट (वर्तमान सिंध, पाकिस्तान) के राजा सूरजमल सोढ़ा की पुत्री थीं। पाबूजी ने अपने जीवन में असहायों की रक्षा और गौरक्षा के लिए अनुकरणीय कार्य किए, जिसके कारण उन्हें लक्ष्मण का अवतार माना जाता है।

प्रमुख जानकारी

  • जन्म: 1239 ई., कोलुमण्ड, जोधपुर
  • माता-पिता: धाँधल जी राठौड़ और कमलादे
  • पत्नी: फूलमदे (सुपियार दे सोढ़ी)
  • प्रमुख मंदिर: कोलुमण्ड (जोधपुर), सिम्भूदड़ा (बीकानेर)

केसर कालमी: पाबूजी की वफादार घोड़ी

पाबूजी की काले रंग की घोड़ी केसर कालमी उनकी गाथाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह घोड़ी उन्हें देवल चारणी (नागौर के जायल की काछेला चारण की पत्नी) ने भेंट की थी। केसर कालमी की निष्ठा और शक्ति पाबूजी की वीरता को और उजागर करती है। लोककथाओं और फड़ परंपरा में इस घोड़ी का उल्लेख बार-बार होता है, जो उनकी साहसी यात्राओं का प्रतीक है।


देचू का युद्ध: बलिदान की अमर गाथा

सन् 1276 ई. में जोधपुर के देचू गाँव में पाबूजी ने देवल चारणी की गायों को जींदराव खींची के चंगुल से बचाने के लिए ऐतिहासिक युद्ध लड़ा। इस युद्ध में उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी और वीरगति प्राप्त की। उनके भाई बूड़ोजी भी इस युद्ध में शहीद हुए। पाबूजी की पत्नी फूलमदे उनके वस्त्रों के साथ सती हो गईं। यह युद्ध राजस्थानी लोकगीतों और फड़ परंपरा में अमर है, जो पाबूजी की निस्वार्थ भक्ति और साहस को दर्शाता है।

  • युद्ध: देचू गाँव, 1276 ई.
  • उद्देश्य: देवल चारणी की गायों की रक्षा
  • बलिदान: पाबूजी, बूड़ोजी, और फूलमदे

रूपनाथ जी: बदले की गाथा

पाबूजी के भतीजे और बूड़ोजी के पुत्र रूपनाथ जी ने जींदराव खींची को मारकर अपने पिता और चाचा की मृत्यु का बदला लिया। रूपनाथ जी को भी लोकदेवता के रूप में पूजा जाता है, और उनके प्रमुख मंदिर कोलुमण्ड (फलौदी, जोधपुर) और सिम्भूदड़ा (नोखा मण्डी, बीकानेर) में स्थित हैं। हिमाचल प्रदेश में उन्हें बालकनाथ के नाम से जाना जाता है। उनकी कहानियाँ राजस्थानी लोककथाओं में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।


पाबूजी की फड़: राजस्थानी लोककला का खजाना

पाबूजी की फड़ राजस्थान की सबसे प्रसिद्ध लोककला है। यह कपड़े पर चित्रित जीवनी होती है, जिसे नायक जाति के भील भोपे रावण हत्था वाद्य यंत्र के साथ रात में बाँचते हैं। भोपा गीत गाता है, जबकि भोपी लालटेन की रोशनी में चित्रों को दर्शकों को दिखाती है और नृत्य करती है। यह परंपरा राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखती है।

फड़ निर्माण और अन्य प्रमुख फड़ें

  • निर्माण केंद्र: शाहपुरा (भीलवाड़ा), जहाँ जोशी परिवार (शांतिलाल जोशी और श्रीलाल जोशी) फड़ चित्रकारी में माहिर है। इस परिवार ने “द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका” और “कलिंग विजय के बाद अशोक” जैसे विषयों पर भी फड़ बनाए हैं।
  • अन्य प्रमुख फड़ें:
    • रामदेवजी की फड़: कामड़ जाति के भोपे इसे रावण हत्था के साथ बाँचते हैं।
    • देवनारायण जी की फड़: सबसे प्राचीन और लंबी फड़, जिस पर 2 सितंबर 1992 को भारत सरकार ने 5 रुपये का डाक टिकट जारी किया।
    • भैंसासुर की फड़: इसका वाचन नहीं होता; इसे केवल कंजर जाति पूजती है।
    • रामदला-कृष्णदला की फड़: पूर्वी राजस्थान की एकमात्र फड़, जिसका वाचन दिन में होता है।
    • अमिताभ बच्चन की फड़: मारवाड़ के भोपा रामलाल और भोपी पताशी ने इसे बाँचकर आधुनिकता को फड़ परंपरा से जोड़ा।

पाबूजी की सांस्कृतिक विरासत

पाबूजी को लक्ष्मण का अवतार माना जाता है, और मारवाड़ में साण्डे (ऊँटनी) लाने का श्रेय उन्हें दिया जाता है। उनकी जीवनी “पाबू प्रकाश”, जिसके रचयिता आशिया मोड़जी हैं, उनकी वीरता और भक्ति को अमर करती है। उनके रक्षक हरमल और चाँदा डेमा भी उनकी गाथाओं में महत्वपूर्ण हैं।

  • मेले: माघ शुक्ला दशमी और भाद्रपद शुक्ला दशमी को कोलुमण्ड में पाबूजी का भव्य मेला लगता है।
  • पवाड़े: पाबूजी की गाथाएँ माठ वाद्य यंत्र के साथ गाई जाती हैं।
  • प्रतीक चिह्न: भाला लिए अश्वारोही और बायीं ओर झुकी पाग।

प्रसिद्ध कहावत

“पाबूजी की जय, केसर कालमी की सवारी, गौरक्षा का बलिदान, मारवाड़ की शान।”


निष्कर्ष

पाबूजी राठौड़ राजस्थान के वीर और लोक देवता हैं, जिनकी गौरक्षा और बलिदान की कहानियाँ आज भी प्रेरणा देती हैं। उनकी केसर कालमी, फड़ परंपरा, और कोलुमण्ड मेला राजस्थानी संस्कृति की जीवंत धरोहर हैं। पाबूजी की गाथाएँ और उनकी फड़ कला न केवल मारवाड़ की शान हैं, बल्कि भारत की लोक संस्कृति का अनमोल खजाना भी हैं। 

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