बाबा रामदेवजी : पीरों के पीर और सामाजिक समरसता के प्रतीक

बाबा रामदेवजी का जीवन परिचय

बाबा रामदेवजी का जन्म भाद्रपद शुक्ला द्वितीया, संवत् 1409 (1352 ई.) को बाड़मेर जिले के उंडूकाश्मीर गाँव (शिव तहसील) में हुआ था। उनके पिता अजमलजी तंवर और माता मैणादे थीं। उनकी पत्नी नेतलदे, अमरकोट (सिंध, अब पाकिस्तान) के राजा दल्लेसिंह सोढ़ा की पुत्री थीं। रामदेवजी को भगवान कृष्ण और उनके बड़े भाई बीरमदेव को बलराम का अवतार माना जाता है। उनके गुरु योगी बालीनाथ थे, जिनका मंदिर जोधपुर के मसूरिया में स्थित है।

प्रमुख जानकारी

  • जन्म: भाद्रपद शुक्ला द्वितीया, संवत् 1409
  • जन्म स्थान: उंडूकाश्मीर, बाड़मेर
  • पिता: अजमलजी तंवर
  • पत्नी: नेतलदे
  • सवारी: लीला (हरा) घोड़ा
  • प्रमुख मंदिर: रामदेवरा, जैसलमेर

चमत्कार और “पीरों के पीर” की उपाधि

रामदेवजी अपने जीवनकाल में अनेक चमत्कारों (परचों) के लिए प्रसिद्ध थे। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, जब मक्का से आए पंच पीर उनके पास भोजन के लिए आए, तो रामदेवजी ने उनके कटोरे को चमत्कारी रूप से प्रस्तुत कर दिखाया। प्रभावित होकर पंच पीरों ने कहा, “हम तो केवल पीर हैं, पर आप पीरों के पीर हैं!” इस घटना ने उन्हें “रामसा पीर” की उपाधि दिलाई। उनकी करुणा और शक्ति ने हिंदू और मुस्लिम भक्तों को एकजुट किया, जिससे वे साम्प्रदायिक सद्भाव के प्रतीक बन गए।


रामदेवजी की समाधि और प्रमुख पूजा स्थल

रामदेवजी ने भाद्रपद शुक्ला दशमी, संवत् 1442 (1385 ई.) को जैसलमेर के रामसरोवर की पाल पर रामदेवरा (रूणेचा) में समाधि ली। उनकी मुँह बोली बहन डाली बाई ने उनके समाधि स्थल पर पहले समाधि ली थी। बीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने रामदेवरा में उनके भव्य मंदिर का निर्माण करवाया, जो आज लाखों भक्तों का तीर्थ स्थल है।

  • रामदेवरा/रूणेचा (जैसलमेर): प्रमुख तीर्थ स्थल
  • मसूरिया (जोधपुर): बालीनाथ का मंदिर
  • बिराठिया (पाली)
  • बिठूजा (बालोतरा, बाड़मेर)
  • सूरताखेड़ा (चित्तौड़गढ़)
  • छोटा रामदेवरा (जूनागढ़, गुजरात)

कामड़ पंथ और तेरहताली नृत्य

रामदेवजी ने कामड़ पंथ की स्थापना की, जो सामाजिक समानता और भक्ति का प्रतीक है। इसका प्रमुख केंद्र पादरला गाँव (पाली) है। कामड़ जाति की महिलाएँ उनकी आराधना में तेरहताली नृत्य करती हैं, जो विश्व का एकमात्र बैठकर किया जाने वाला लोकनृत्य है। इस नृत्य में तेरह मंजीरे (नौ दाहिने पांव पर, दो कोहनियों पर, दो हाथों में) और तन्दुरा (चौतारा) वाद्य यंत्र का उपयोग होता है। प्रसिद्ध नृत्यांगनाएँ मांगीबाई और दुर्गाबाई इस कला को जीवित रख रही हैं।


रामदेवरा मेला: साम्प्रदायिक सद्भाव का उत्सव

हर साल भाद्रपद शुक्ला द्वितीया को रामदेवरा (जैसलमेर) में रामदेवरा मेला आयोजित होता है, जो पश्चिमी राजस्थान का सबसे बड़ा मेला है। यह मेला हिंदू और मुस्लिम भक्तों के बीच साम्प्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है। भक्त पचरंगी ध्वजा (नेजा) और पगल्यां (पत्थर पर उत्कीर्ण पैर) की पूजा करते हैं। मेले में रिखियां (मेघवाल भक्त) और जातरू (तीर्थ यात्री) जम्मा जागरण (रात्रि सत्संग) में भाग लेते हैं, जो भक्ति और उत्साह से भरा होता है।


रामदेवजी की सवारी और चमत्कार

रामदेवजी की सवारी लीला (हरा) घोड़ा मानी जाती है, जो उनकी शक्ति और भक्ति का प्रतीक है। उन्होंने सातलमेर (पोकरण) में भैरव राक्षस का वध किया और कुष्ठ रोगहैजा जैसे रोगों के निवारक देवता के रूप में पूजे जाते हैं। उनकी रचना ‘चौबीस बाणियाँ’ उनकी काव्य प्रतिभा को दर्शाती है, जिसके कारण वे एकमात्र कवि लोकदेवता कहलाते हैं।


रामदेवजी की सांस्कृतिक विरासत

रामदेवजी की फड़ (लोक कथाएँ) को कामड़ जाति के भोपे रावण हत्था वाद्य यंत्र के साथ बाँचते हैं, जो राजस्थान की लोक संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। उनकी शिक्षाएँ करुणा, सेवा, और सामाजिक समरसता पर आधारित हैं। रामदेवजी ने समाज में जातिगत भेदभाव को खत्म करने और सभी को एकजुट करने का संदेश दिया। उनके मंदिर और मेला आज भी लाखों भक्तों को आकर्षित करते हैं।

प्रसिद्ध कहावत

“रामदेवजी की जय, पीरों के पीर, सबके रक्षक, सबके सम्हार।”


रोचक तथ्य

  • रामदेवजी को दलितों का देवता भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने सामाजिक समानता को बढ़ावा दिया।
  • उनके मंदिर में हिंदू और मुस्लिम पुजारी एक साथ पूजा करते हैं, जो साम्प्रदायिक एकता का प्रतीक है।
  • तेरहताली नृत्य विश्व का एकमात्र बैठकर किया जाने वाला लोकनृत्य है।
Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url