"कैबिनेट मिशन योजना 1946
कैबिनेट मिशन का आगमन और उद्देश्य
19 फरवरी, 1946 को ब्रिटेन के भारत मंत्री लॉर्ड पैंथिक लारेंस ने घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार भारत में एक कैबिनेट मिशन भेजेगी। इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय नेताओं से बातचीत कर स्वतंत्रता के मुद्दे पर समाधान निकालना था। 24 मार्च, 1946 को यह मिशन दिल्ली पहुंचा।
- सदस्य:
- अध्यक्ष: लॉर्ड पैंथिक लारेंस
- अन्य सदस्य: सर स्टेफर्ड क्रिप्स और ए. वी. अलेक्जेंडर
मिशन ने कांग्रेस, मुस्लिम लीग और अन्य राजनीतिक दलों के साथ वार्ता शुरू की, जो 17 अप्रैल, 1946 तक चली। लेकिन कोई समझौता नहीं हुआ। इसलिए, मिशन ने खुद एक योजना प्रस्तुत की, जो "कैबिनेट मिशन योजना" के नाम से जानी जाती है।
कैबिनेट मिशन योजना की मुख्य विशेषताएं
इस योजना में भारत को एक संघीय राज्य बनाने का प्रस्ताव था, जिसमें ब्रिटिश प्रांत और देशी रियासतें शामिल होतीं। यहां योजना की प्रमुख बातें सूचीबद्ध हैं:
- संघ राज्य की स्थापना: भारत में एक संघ राज्य बनेगा, जिसमें सभी ब्रिटिश प्रांत और देशी रियासतें शामिल होंगी। संघ का अधिकार केवल विदेशी मामलों, रक्षा और यातायात पर होगा।
- कार्यकारिणी और व्यवस्थापिका: संघ की कार्यकारिणी और व्यवस्थापिका में ब्रिटिश प्रांतों और देशी रियासतों के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
- सांप्रदायिक मुद्दों का समाधान: व्यवस्थापिका में किसी सांप्रदायिक समस्या से जुड़े मुद्दे का फैसला उसी संप्रदाय के बहुमत से होगा।
- प्रांतों के अधिकार: संघ को दिए विषयों को छोड़कर बाकी सभी विषय प्रांतों के पास रहेंगे।
- संविधान सभा का गठन: अप्रत्यक्ष चुनाव से संविधान सभा बनेगी, जिसमें कुल 389 सदस्य होंगे:
- 292: ब्रिटिश प्रांतों से
- 93: देशी रियासतों से
- 4: चीफ कमिश्नर क्षेत्रों से
- प्रतिनिधित्व का आधार: लगभग 10 लाख लोगों पर एक सदस्य। प्रांतों और रियासतों को जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व। रियासतों के प्रतिनिधि चुनाव का तरीका समझौता समिति तय करेगी।
- प्रांतों की स्वतंत्रता: प्रांत मिलकर अलग गुट बना सकते हैं।
- प्रांतों के वर्गीकरण: संविधान सभा की बैठक के बाद सदस्य तीन वर्गों में बंटेंगे:
- वर्ग A: हिंदू बहुमत वाले प्रांत (मद्रास, बॉम्बे, संयुक्त प्रांत, उड़ीसा, बिहार, मध्य प्रांत)।
- वर्ग B: मुस्लिम बहुमत वाले उत्तर-पश्चिमी प्रांत (सिंध, बलूचिस्तान, उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत, पंजाब)।
- वर्ग C: मुस्लिम बहुमत वाले उत्तर-पूर्वी प्रांत (बंगाल, असम)।
- अंतरिम सरकार: 14 सदस्यों वाली अंतरिम सरकार बनेगी (6 कांग्रेस, 5 मुस्लिम लीग, 1 ईसाई, 1 सिख, 1 पारसी)।
- सत्ता हस्तांतरण: भारत और ब्रिटेन के बीच संधि होगी संविधान सभा और सत्ता हस्तांतरण के मुद्दों पर।
ये विशेषताएं भारत को एकजुट रखने का प्रयास करती थीं, लेकिन सांप्रदायिक विभाजन की छाया भी थी।
कैबिनेट मिशन योजना का आलोचनात्मक मूल्यांकन
कैबिनेट मिशन योजना में कई गुण थे, लेकिन दोष भी कम नहीं। महात्मा गांधी ने इसे "उन परिस्थितियों में ब्रिटिश सरकार की सर्वश्रेष्ठ पेशकश" कहा। योजना ने भारत के विभाजन को साफ-साफ नकारा, क्योंकि इससे एकता भंग होती और सेवाएं (यातायात, डाक, रक्षा) बंट जातीं। इसमें संयुक्त भारत की कल्पना थी।
मुख्य गुण:
- पाकिस्तान की मांग को अस्वीकार किया।
- संविधान सभा के माध्यम से भारतीयों को अपना भविष्य तय करने का अधिकार।
- संघीय ढांचा जो विविधता को सम्मान देता था।
मुख्य दोष:
- पाकिस्तान को अस्वीकार करते हुए भी उसके सार को अपनाया गया। प्रांतों के वर्ग (A, B, C) बनाने से पाकिस्तान जैसा विभाजन संभव हो गया।
- केंद्र कमजोर बना, क्योंकि केवल तीन विषय उसके पास। प्रांतों को ज्यादा अधिकार मिलने से राष्ट्रीय एकता पर असर।
- सांप्रदायिक आधार पर फैसले से धार्मिक विभेद बढ़ सकता था।
- देशी रियासतों के प्रतिनिधि चुनाव का तरीका अस्पष्ट।
विभिन्न दलों ने आलोचना की, लेकिन अंत में सभी ने स्वीकार किया:
- मुस्लिम लीग: 6 जून, 1946
- कांग्रेस: 25 जून, 1946
यह योजना भारत विभाजन की ओर ले गई, क्योंकि लीग ने वर्ग B और C को पाकिस्तान का आधार बनाया।
निष्कर्ष: कैबिनेट मिशन योजना का ऐतिहासिक महत्व
कैबिनेट मिशन योजना ने भारत को स्वतंत्रता की दहलीज पर पहुंचाया, लेकिन सांप्रदायिक तनावों के कारण यह पूर्ण सफल नहीं हुई। यह योजना संविधान सभा के गठन का आधार बनी, जो बाद में भारतीय संविधान का निर्माण किया।