साम्प्रदायिकता : कारण , निवारण के उपाय

सांप्रदायिकता एक ऐसी भावना है जो धर्म, संस्कृति, भाषा, क्षेत्र या प्रजाति जैसी भिन्नताओं के आधार पर समाज के एक समूह को दूसरे से अलग करती है और उन्हें एक-दूसरे का विरोध करने के लिए प्रेरित करती है। भारत में यह मुख्य रूप से धार्मिक अंधविश्वास, भक्ति और निष्ठा से जुड़ी हुई है। विस्तृत रूप से देखें तो सांप्रदायिकता दो या अधिक धर्मों के अनुयायियों के बीच होने वाला संघर्ष है, जिसमें न केवल सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान होता है, बल्कि राष्ट्रीय एकता और सामाजिक सौहार्द भी प्रभावित होता है।

भारत में सांप्रदायिकता एक ऐतिहासिक और जटिल समस्या बनी हुई है, जो समय-समय पर दंगे, हिंसा और विभाजन का कारण बनती रही है। इस लेख में हम इसके प्रमुख कारणों और निवारण के उपायों पर चर्चा करेंगे, ताकि एक सामंजस्यपूर्ण समाज की दिशा में सोच सकें।

सांप्रदायिकता के प्रमुख कारण

सांप्रदायिकता के उदय के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं, जो ऐतिहासिक, धार्मिक, राजनीतिक, मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक स्तर पर काम करते हैं। आइए इन्हें विस्तार से समझें:

1. ऐतिहासिक कारण

इतिहास में मुस्लिम धर्म को अक्सर बाहरी आक्रमणकारियों के रूप में चित्रित किया गया है। इन आक्रमणकारियों ने अपनी सत्ता को स्थायी बनाने के लिए धर्मांतरण का सहारा लिया, जिसका स्थानीय जनता ने कड़ा विरोध किया। ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजों ने "फूट डालो और राज करो" की नीति अपनाई, जिससे हिंदू-मुस्लिम समुदायों के बीच संघर्ष बढ़े और विभाजन की नींव पड़ी।

2. धार्मिक कारण

सभी धर्मों ने अपने प्रचार-प्रसार के लिए संगठनों की स्थापना की है। ये संगठन न केवल अपने धर्म की श्रेष्ठता का प्रचार करते हैं, बल्कि अन्य धर्मों की कमियों को भी उजागर करते हैं। इससे धार्मिक असहिष्णुता और संघर्ष में वृद्धि होती है, जो अक्सर हिंसक रूप ले लेता है।

3. राजनीतिक कारण

भारत का विभाजन सांप्रदायिक राजनीति का स्पष्ट परिणाम था। स्वतंत्रता के बाद भी संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए धार्मिक उन्माद को बढ़ावा दिया जाता रहा है। नेता वोट बैंक की राजनीति के चलते समुदायों को विभाजित करते हैं, जिससे सांप्रदायिक तनाव बढ़ता है।

4. मनोवैज्ञानिक कारण

बहुसंख्यक समुदाय की तुलना में अल्पसंख्यक समुदाय मनोवैज्ञानिक रूप से असुरक्षा महसूस करते हैं। इससे वे संगठित होकर बहुसंख्यकों के प्रति घृणा, द्वेष और विरोध की भावनाएं व्यक्त करते हैं, जो सांप्रदायिकता को जन्म देती है।

5. सांस्कृतिक कारण

हिंदू और मुस्लिम जैसे प्रमुख धर्मों की संस्कृतियां अलग-अलग हैं। भाषा, वेशभूषा, खान-पान और जीवनशैली जैसी विशेषताओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है, जिससे "द्वि-राष्ट्र सिद्धांत" जैसे विचारों को बल मिलता है। अल्पसंख्यकवाद भी इसी का एक रूप है, जहां अल्पसंख्यक अपनी अलग पहचान को मजबूत करने के प्रयास में संघर्ष करते हैं।

सांप्रदायिकता के निवारण के उपाय

सांप्रदायिकता को जड़ से मिटाने के लिए ठोस और बहुआयामी उपाय अपनाने की आवश्यकता है। नीचे कुछ प्रमुख सुझाव दिए गए हैं:

  • धार्मिक संगठनों पर नियंत्रण: ऐसे संगठनों पर रोक लगाई जाए जो धार्मिक घृणा फैलाते हैं। सरकारी निगरानी से प्रचार सामग्री को संतुलित बनाया जा सकता है।
  • अल्पसंख्यकवाद की समाप्ति: अल्पसंख्यकों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए नीतियां बनाई जाएं, ताकि असुरक्षा की भावना कम हो।
  • राष्ट्रीय भावना का प्रचार-प्रसार: शिक्षा, मीडिया और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा दिया जाए।
  • तीव्र और संतुलित आर्थिक विकास: आर्थिक असमानता सांप्रदायिकता का एक बड़ा कारण है। समावेशी विकास से समुदायों के बीच विश्वास बढ़ेगा।
  • समान कानून संहिता: सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू की जाए, जो धार्मिक भेदभाव को समाप्त करे।
  • राष्ट्रीय एकता परिषद: 1969 में दिल्ली में गठित इस परिषद को मजबूत बनाया जाए और इसके माध्यम से सांप्रदायिक मुद्दों पर चर्चा हो।
  • सभी धर्मों के उत्सवों का सम्मान: विभिन्न धर्मों के त्योहारों को सामूहिक रूप से मनाने की परंपरा शुरू की जाए, जो सौहार्द बढ़ाए।
  • पर्याप्त कानून और उनका क्रियान्वयन: मौजूदा कानूनों को सख्ती से लागू किया जाए और नए कानून बनाए जाएं जो सांप्रदायिक हिंसा को रोकें।

निष्कर्ष

सांप्रदायिकता भारत की एकता के लिए एक बड़ा खतरा है, लेकिन सही दृष्टिकोण और सामूहिक प्रयासों से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। शिक्षा, जागरूकता और राजनीतिक इच्छाशक्ति से हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर सकते हैं जहां सभी धर्म शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में रहें। आइए, हम सब मिलकर "एक भारत, श्रेष्ठ भारत" के सपने को साकार करें।

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