सूखा :आपदा प्रबंधन (Disaster Management)
सूखा एक प्राकृतिक आपदा है जो लंबे समय तक अपर्याप्त वर्षा, अत्यधिक वाष्पीकरण, भूजल के अत्यधिक दोहन, या जलाशयों में पानी की कमी के कारण उत्पन्न होती है। यह एक जटिल घटना है, जिसमें मौसम विज्ञान, कृषि, सामाजिक-आर्थिक कारक, और पारिस्थितिक स्थितियां शामिल होती हैं। भारत में, सूखा एक प्रमुख आपदा है क्योंकि देश की कृषि काफी हद तक मानसूनी वर्षा पर निर्भर है।
सूखे के प्रकार
- मौसम विज्ञानीय सूखा (Meteorological Drought): लंबे समय तक सामान्य से कम वर्षा होने के कारण उत्पन्न होता है
- कृषि सूखा (Agricultural Drought): मिट्टी में नमी की कमी के कारण फसलों को नुकसान होता है, जिससे फसल उत्पादन प्रभावित होता है।
- जलवैज्ञानिक सूखा (Hydrological Drought): जलाशयों, नदियों, झीलों, और भूजल स्तर में पानी की कमी के कारण होता है।
- पारिस्थितिक सूखा (Ecological Drought): पानी की कमी से प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता कम हो जाती है, जिससे जैव विविधता को नुकसान होता है।
भारत में सूखे का प्रभाव
- कृषि और खाद्य सुरक्षा: फसल उत्पादन में कमी, भोजन और चारे की कमी, और खाद्य मूल्यों में वृद्धि।
- आर्थिक प्रभाव: किसानों की आय में कमी, ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर दबाव, और बेरोजगारी में वृद्धि।
- सामाजिक प्रभाव: पलायन, कुपोषण, और सामाजिक अस्थिरता।
- पर्यावरणीय प्रभाव: मृदा क्षरण, भूजल स्तर में कमी, और जैव विविधता का ह्रास।
- स्वास्थ्य प्रभाव: पानी की कमी से स्वच्छता संबंधी समस्याएं और रोगों का प्रसार।
भारत में सूखा प्रवण क्षेत्र
- अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र: राजस्थान (अरावली के पश्चिमी भाग), गुजरात (कच्छ क्षेत्र)।
- गंभीर सूखा संभावित क्षेत्र: मराठवाड़ा (महाराष्ट्र), बुंदेलखंड (उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश), तेलंगाना, और आंध्र प्रदेश।
- आंकड़े: भारत का लगभग 30% भौगोलिक क्षेत्र सूखा प्रवण है, और हर साल 19% क्षेत्र और 12% आबादी सूखे से प्रभावित होती है।
सूखा प्रबंधन के लिए भारत का ढांचा
- संस्थागत ढांचा:
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA): सूखा प्रबंधन के लिए नीतियां और दिशानिर्देश तैयार करता है। यह प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कार्य करता है।
- राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA): राज्य स्तर पर सूखा प्रबंधन की योजनाएं लागू करता है।
- सूखा निगरानी प्रकोष्ठ (DMC): राज्य स्तर पर सूखे की निगरानी और भेद्यता मानचित्र तैयार करता है।
- कानूनी ढांचा:
- आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005: सूखे सहित सभी आपदाओं के प्रबंधन के लिए एकीकृत दृष्टिकोण प्रदान करता है। यह जोखिम न्यूनीकरण, तैयारी, प्रतिक्रिया, और पुनर्वास पर जोर देता है।
- नीतिगत उपाय:
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीति: जोखिम न्यूनीकरण और सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देती है।
- सूखा प्रबंधन दिशानिर्देश (NDMA): सूखे की निगरानी, शीघ्र चेतावनी, और राहत उपायों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
सूखा प्रबंधन के लिए उपाय
- जोखिम न्यूनीकरण और शमन:
- जल संरक्षण: वर्षा जल संचयन, तालाबों और चेक डैम का निर्माण।
- सिंचाई सुधार: ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई को बढ़ावा देना।
- मृदा प्रबंधन: मृदा संरक्षण उपाय, जैसे कंटूर बंडिंग और जैविक खेती।
- वनीकरण: सूखा रोधी वनस्पति और पेड़ों का रोपण।
- तैयारी:
- शीघ्र चेतावनी प्रणाली: भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) और राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (NRSC) द्वारा सूखे की निगरानी।
- फसल आकस्मिक योजना: कम पानी वाली फसलों (जैसे बाजरा, ज्वार) को बढ़ावा देना।
- जागरूकता अभियान: सामुदायिक रेडियो और नागरिक समाज संगठनों के माध्यम से जागरूकता।
- प्रतिक्रिया:
- राहत उपाय: प्रभावित क्षेत्रों में खाद्य, पानी, और चारा वितरण।
- वित्तीय सहायता: किसानों के लिए डीजल सब्सिडी, बीमा, और ऋण माफी।
- रोजगार सृजन: मनरेगा जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से ग्रामीण रोजगार।
- पुनर्वास और पुनर्प्राप्ति:
- जल संसाधन विकास: त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम और वाटरशेड प्रबंधन।
- पुनर्वास योजनाएं: प्रभावित समुदायों के लिए दीर्घकालिक आजीविका समाधान।
सरकारी योजनाएं
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS): सूखा प्रभावित क्षेत्रों में रोजगार सृजन।
- एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम (IWMP): जल संरक्षण और मृदा प्रबंधन।
- राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (NRDWP): पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित करना।
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): सिंचाई सुविधाओं का विस्तार।
चुनौतियां
- प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण: भारत में आपदा प्रबंधन अभी भी राहत और पुनर्वास पर केंद्रित है, जबकि निवारक उपायों की कमी है।
- डेटा एकीकरण: विभिन्न संस्थानों (IMD, ICAR, NRSC) से डेटा का समन्वय अपर्याप्त है।
- जलवायु परिवर्तन: सूखे की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि, जिसके लिए दीर्घकालिक योजना की आवश्यकता है।
- सामुदायिक भागीदारी: स्थानीय समुदायों को प्रबंधन में शामिल करने की कमी।
सुझाव
- निवारक दृष्टिकोण: जोखिम न्यूनीकरण और शीघ्र चेतावनी प्रणालियों पर ध्यान देना।
- तकनीकी एकीकरण: डेटा विश्लेषण के लिए AI और उपग्रह इमेजरी का उपयोग।
- सामुदायिक सहभागिता: स्थानीय स्तर पर जागरूकता और प्रशिक्षण कार्यक्रम।
- जलवायु अनुकूलन: सूखा प्रतिरोधी फसलों और टिकाऊ कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग: वैश्विक विशेषज्ञता और संसाधनों का उपयोग।